सोमवार, 4 जनवरी 2010

भरतपुर की महारानी ने कहा, मराठा सैनिक मेरे बच्चे हैं

एक तरफ तो बंगाल से अंगे्रज शक्ति उत्तरी भारत को दबाती हुई चली आ रही थी तथा दूसरी ओर पिण्डारी और मराठे उत्तरी भारत को रौंदने में लगे हुए थे। यह भारतीय इतिहास के मध्यकाल का अवसान काल था किंतु अफगानिस्तान की ओर से विगत कई शताब्दियों से आ रही इस्लामिक आक्रमणों की आंधी अभी थमी नहीं थी। ई.1757 में अफगान सरदार अदमदशाह दुर्रानी ने भारत पर चौथा आक्रमण किया। वह इतिहास में अहमदशाह अब्दाली के नाम से जाना जाता है। उसने सुन रखा था कि भारत में दो ही धनाढ्य व्यक्ति हैं– एक तो नवाब शुजाउद्दौला तथा दूसरा भरतपुर का राजा सूरजमल। अत: वह भरतपुर के खजाने को लूटने के लिये बड़ा व्याकुल था।
अहमदशाह अब्दाली ने बल्लभगढ़, कुम्हेर, डीग, भरतपुर तथा मथुरा पर आक्रमण कर दिया। उसने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि मथुरा में एक भी आदमी जीवित न रहे तथा जो मुसलमान किसी विधर्मी का सिर काटकर लाये, उसे पाँच रुपया प्रति सिर के हिसाब से ईनाम दिया जाये। अहमदशाह की घुड़सवार सेना ने अर्ध रात्रि में बल्लभगढ़ पर आक्रमण किया गया। प्रात:काल होने पर लोगों ने देखा कि प्रत्येक घुड़सवार एक घोड़े पर चढ़ा हुआ था। उसने उस घोड़े की पूंछ के साथ दस से बीस घोड़ों की पूंछों को बांध रखा था। सभी घोड़ों पर लूट का सामान लदा हुआ था तथा बल्लभगढ़ से पकड़े गये स्त्री–पुरुष बंधे हुए थे। प्रत्येक आदमी के सिर पर कटे हुए सिरों की गठरियां रखी हुई थीं। वजीरे आजम अहमदशाह के सामने कटे हुए सिरों की मीनार बनायी गयी। जो लोग इन सिरों को अपने सिरों पर रख कर लाये थे, उनसे पहले तो चक्की पिसवाई गयी तथा उसके बाद उनके भी सिर काटकर मीनार में चिन दिये गये।
इसके बाद अहमदशाह अब्दाली मथुरा में घुसा। उस दिन होली के त्यौहार को बीते हुए दो ही दिन हुए थे। अहमदशाह ने माताओं की छाती से दूध पीते बच्चों को छीनकर मार डाला। हिन्दू सन्यासियों के गले काटकर उनके साथ गौओं के कटे हुए गले बांध दिये गये। मथुरा के प्रत्येक स्त्री–पुरुष को नंगा किया गया। जो पुरुष मुसलमान निकले उन्हें छोड़ दिया गया, शेष को मार दिया गया। मुसलमान औरतों की इज्जत लूट कर उन्हें जीवित छोड़ दिया गया तथा हिन्दू औरतों को इज्जत लूटकर मार दिया गया। मथुरा और वृंदावन में इतना रक्त बहा कि वह यमुना का पानी लाल हो गया। अब्दाली के आदमियों को वही पानी पीना पड़ा। इससे फौज में हैजा फैल गया और सौ–डेढ़ सौ आदमी प्रतिदिन मरने लगे। अनाज की कमी के कारण सेना घोड़ों का मांस खाने लगी। इससे घोड़ों की कमी हो गयी। बचे हुए सैनिक विद्रोह पर उतारू हो गये। इस कारण अहमदशाह को भरतपुर लूटे बिना ही अफगानिस्तान लौट जाना पड़ा। राजा सूरजमल अब्दाली की विशाल सेना के विरुद्ध कुछ नहीं कर सका।
चार साल बाद अब्दाली वापस भारत आया। इस बार मराठों और जाटों ने मिलकर उसका सामना करने की योजना बनायी। उन्होंने अब्दाली का मार्ग रोकने के लिये आगे बढ़कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। दिल्ली हाथ में आते ही मराठे तोतों की तरह आंख बदलने लगे। राजा सूरजमल के लाख मना करने पर भी मराठों ने लाल किले के दीवाने खास की छतों से चांदी के पतरे उतार लिये और नौ लाख रुपयों के सिक्के ढलवा लिये। सूरजमल स्वयं दिल्ली का शासक बनना चाहता था इसलिये उसे यह बात बुरी लगी और उसने मराठों का विरोध किया।
सूरजमल चाहता था कि दिल्ली के बादशाह आलमगीर द्वितीय को मार डाला जाये किंतु आलमगीर मराठा नेता कुशाभाऊ ठाकरे को अपना धर्मपिता कहकर उसके पांव पकड़ लेता था। सूरजमल आलमगीर से इसलिये नाराज था क्योंकि इस बार अब्दाली को भारत आने का निमंत्रण आलमगीर ने ही भेजा था ताकि सूरजमल को कुचला जा सके। कुशाभाऊ का आलमगीर के प्रति अनुराग देखकर सूरजमल नाराज होकर दिल्ली से भरतपुर लौट आया।
इसके बाद पानीपत के मैदान में इतिहास प्रसिद्ध पानीपत की पहली लड़ाई हुई। इस युद्ध में अब्दाली ने 1 लाख मराठों को काट डाला। कुशाभाऊ ठाकरे मारा गया। बचे हुए मराठा सैनिक प्राण लेकर भरतपुर की तरफ भागे। किसानों ने भागते हुए सैनिकों के हथियार, सम्पत्ति और वस्त्र छीन लिये। भूखे और नंगे मराठा सैनिक सूरजमल के राज्य में प्रविष्ठ हुए। सूरजमल ने उनकी रक्षा के लिये अपनी सेना भेजी। उन्हें भोजन, वस्त्र और शरण प्रदान की।
महारानी किशोरी देवी ने देश की जनता का आह्वान किया कि वे भागते हुए मराठा सैनिकों को न लूटें। मराठा सैनिकों को मेरे बच्चे जानकर उनकी रक्षा करें। महारानी किशोरी देवी ने मराठा शरणार्थियों के लिये भरतपुर में अपना भण्डार खोल दिया। उसने सात दिन तक चालीस हजार मराठों को भोजन करवाया। ब्राणों को दूध, पेड़े और मिठाइयां दीं। राजा सूरजमल ने प्रत्येक मराठा सैनिक को एक–एक रुपया, एक वस्त्र और एक सेर अन्न देकर अपनी सेना के संरक्षण में मराठों की सीमा में ग्वालिअर भेज दिया।

5 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

कहानी वो वाकिये में धासु है | क्या ये असली वृतांत है ? क्या इनके प्रमाणिक दस्तावेज है या
सिर्फ सूरजमल का advertisement है |

Dr. Mohanlal Gupta ने कहा…

मान्यवर , यह ऐतिहासिक लेख माला सौ खण्डों में दैनिक नव ज्योति में प्रकाशित हुई थी . पूरी तरह ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है.कोई संदेह नहीं कि महाराजा सूरजमल हिन्दू कुल गौरव थे. उन्हें विज्ञापन की कोई आवश्यकता नहीं है. अच्छा प्रश्न पूछने के लिए धन्यवाद. मोहन लाल गुप्ता

बेनामी ने कहा…

कुशाभाऊ ठाकरे?????
ये कौन है???
आपको सदाशिव भाऊ कहना है क्या???
और... सदाशिव भाऊ ये पेशवा थे.... मराठा राजा ओ का राज पाहिले चलता था.. बादमे पेशवा लोगोने... खुदकी मनमानी चालू कर दी थी..और मराठा राजा नाममात्र रह गए थे...इसी कारण..और..पेशवोके पक्षपाती कारभार के कारन भी अनेक मराठा सरदार..नाखुश थे..
कही लोग पानीपत के युद्ध के खिलाप थे...
सदाशिव भाऊ के युद्ध नेतृत्व पे बड़ा सवाल भी कुछ लोगों ने खड़ा किया था...
मराठा सैन्य में ही बड़े पैमाने पर.. पानीपत के युद्ध निति को लेकर.. नाखुशी थी...
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पानीपत क्यों हुवा इसके कारण अपने पुरे नहीं दिए ऐसा लगता है...अब्दाली के बेटे को...और उसके कुछ सैनिको के टुकड़ियो को.. मराठा सैन्योने पाहिले हराया था....
वो भी एक कारण है पानीपत होने के लिए...

बेनामी ने कहा…

KIYA AHAMAD SAHA ABDALI ITNA CRUEL THA KI USNE HINDUES KE SIR KE BADLE PANCH RUPEES KI GHOSNA KI THI YHE THO SACH HAI KI PANIPAT KI LADAI 1762 MAI HUI THI AISA LINE ITHIASH KI KITOBAI MAI KHA LIKHI GAI HAI.

RAKESH SHARMA,
FARIDABAB,
09540975602

Unknown ने कहा…

सबसे पहले कुशाभाऊ ठाकरे ऐसा कोई शख्स उस युद्ध मे नही था सदाशिवरावभाऊ इनके नेतृत्व मे ये युद्ध खेला गया था
मराठा उत्तर को रौंद नही रहे थे उन्होने कसम खाई थी हिंदुस्तान से यवनों को भगाएँगे और ऊम्होने वो कर दिखाया तंजावर से लेकर पानीपत तक मुलतान से लेकर बंगाल सीमा तक मराठा साम्राज्य फैला जो कोई सोच नही सकता वो उन्होने कर दिखाया .टूटे मंदिर फिर बनवाए किसानों की मदद की .
युद्ध मे हारे सैनिकों को किसानों ने नही बल्कि लुटेरो ने लूटा भरतपूर की महारानी और राजा सूरजमल जाट इनकी पानीपत युद्ध मे काफी अहम भूमिका है ।वो सच मे महान राजा थे ।