मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

जाझ फिरंगी ने राजपूतों से एक–एक कुंआँ छीन लिया

जॉर्ज टॉमस जयपुर राज्य की सेना के पीछे भागता हुआ इसी प्रयास में था कि किसी तरह एक कुंआँ हाथ लग जाये। दोनों सेनाओं में काफी अंतर था इसलिये जयपुर की सेना कुंओं को पाटने में सफल हो रही थी और जॉर्ज किसी कुएँ पर अधिकार नहीं कर पा रहा था।

जॉर्ज टॉमस राजपूताने में जाझ फिरंगी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसका जन्म ई. 1756 में आयरलैण्ड में हुआ था। वह ई. 1782 में एक अंग्रेजी जहाज से मद्रास आया। वह उन अंग्रेजों में से था जो ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेवा के लिये नहीं अपितु भारत में अपनी रोजी–रोटी की तलाश में स्वतंत्र रूप से आया करते थे। ये लोग कभी किसी रियासत की नौकरी पा लेते तो कभी किसी सैनिक कमाण्डर के नीचे रहकर छोटी–मोटी लड़ाईयां लड़ते थे।

जॉर्ज टॉमस पाँच वर्षों तक कनार्टक में पोलिगरों के साथ रहा। फिर कुछ समय तक हैदराबाद निजाम की सेना में रहकर ई. 1787 में दिल्ली चला आया और बेगम समरू की सेवा में रहा। वहीं से उसे प्रसिद्धि मिलनी आरंभ हुई। ई. 1793 से 1797 तक वह मराठा सेनापति खांडेराव की सेवा में रहा। खांडेराव की मृत्यु होने पर जॉर्ज टॉमस को मराठों का साथ छोड़ देना पड़ा क्योंकि वह वामनराव के व्यवहार से संतुष्ट नहीं था। जॉर्ज टॉमस पंजाब की ओर चला आया और वहाँ एक सेना का निर्माण कर उसने अपने लिये एक दुर्ग बनाकर रहने लगा जिसका नाम उसने जॉर्ज गढ़ रखा। दुर्गपति बनने के बाद उसके हौंसले बुलंद हो गये और वह धन प्राप्ति के लिये योजनाएं बनाकर बड़े–बड़े युद्ध करने लगा। जॉर्ज टॉमस की सफलताएं अद्भुत थीं, उसने हिसार, हांसी तथा सिरसा पर भी अधिकार कर लिया।

ई. 1799 में सिंधिया के सेनापति लकवा दादा ने जयपुर पर आक्रमण किया। लकवादादा के कमाण्डर वामनराव ने जॉर्ज टॉमस को भी इस लड़ाई में आमंत्रित किया। जॉर्ज टॉमस ने वामनराव से कुछ रुपये प्राप्त करने की शर्त पर लड़ाई में भाग लेना स्वीकार किया। जैसे ही जयपुर राज्य की सेना को ज्ञात हुआ कि मराठों की सहायता के लिये जाझ फिरंगी आ गया है तो कच्छवाहे सैनिक मैदान छोड़कर जयपुर की तरफ भाग छूटे।

मैदान साफ देखकर लकवा दादा ने स्थान–स्थान से चौथ वसूली करते हुए फतहपुर की ओर बढ़ना आरंभ किया। उन दिनों जल की अत्यधिक कमी होने के कारण युद्धरत सेनाओं में से पराजित होने वाली सेना मार्ग में पड़ने वाले कुओं को पाटती हुई भागती थी ताकि शत्रु आसानी से उसका पीछा न कर सके जबकि विजयी सेना का यह प्रयास रहता था कि वह शीघ्र से शीघ्र अपने शत्रु तक पहुँच कर कुंए को पाटे जाने से पहले ही उस पर अधिकार कर ले।

जॉर्ज टॉमस जयपुर राज्य की सेना के पीछे भागता हुआ इसी प्रयास में था कि किसी तरह एक कुंआँ हाथ लग जाये। दोनों सेनाओं में काफी अंतर था इसलिये जयपुर की सेना कुंओं को पाटने में सफल हो रही थी और जॉर्ज किसी कुएँ पर अधिकार नहीं कर पा रहा था। अंत में बड़ी कठिनाई से वह एक कुएँ पर अधिकार कर सका।

ठीक उसी समय पीछे भागती हुई जयपुर की सेना को जयपुर से आई नई सेना की सहायता मिल गयी और जयपुर की सेना कांटों की बाड़ आदि लगाकर जॉर्ज तथा लकवा दादा का सामना करने के लिये तैयार हो गयी। दोनों सेनाओं के बीच जमकर युद्ध हुआ जिसमें जयपुर की सेना परास्त हो गयी तथा जयपुर के सेनापति ने संधि की बात चलाई। जयपुर की सेना ने लकवा दादा तथा जॉर्ज टॉमस को बहुत ही कम राशि देने का प्रस्ताव किया जिससे दोनों पक्षों के मध्य संधि नहीं हो सकी। इस समय जॉर्ज की सेना घोड़ों की घास की कमी से परेशान थी फिर उसने लड़ाई आरंभ करने का निर्णय लिया। इसी बीच बीकानेर राज्य की सेना जयपुर राज्य के समर्थन में आ जुटी। इससे युद्ध का पलड़ा बदल गया तथा जॉर्ज ने युद्ध का मैदान छोड़ने का निर्णय लिया। जयपुर की सेना ने दो दिनों तक जॉर्ज की भागती हुई सेना का पीछा किया तथा उसके बहुत से सैनिकों को मार डाला।

3 टिप्‍पणियां:

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