मंगलवार, 30 मार्च 2010

जाझ फिरंगी सदैव के लिये इतिहास के नेपथ्य में चला गया।

कुछ दिन बाद जाझ फिरंगी ने अपनी स्थिति को ठीक करके उसने बीकानेर को दण्डित करने का निर्णय लिया क्योंकि बीकानेर के कारण ही वह जीती हुई लड़ाई हार गया था। जॉर्ज ने इस बार दो काम किये। एक तो उसने अपने तोपखाने को मजबूत बनाया तथा दूसरे उसने पानी का प्रबंध किया। उसने बड़ी बड़ी पखालों में पानी भरवाकर अपने साथ रख लिया तथा वर्षा ऋतु प्रारंभ होने पर बीकानेर राज्य की ओर कूच किया।
बीकानेर का राजा सूरतसिंह जॉर्ज के तोपखाने का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं था। इसलिये उसने खुले मैदान के स्थान पर नगरों और कस्बों के भीतर जॉर्ज से निबटने की योजना बनायी ताकि जॉर्ज का तोपखाना काम न आ सके। सूरतसिंह ने बीकानेर राज्य की सीमा पर आने वाले प्रत्येक गाँव में अपनी पैदल सेना छिपा दी।
जॉर्ज ने सर्वप्रथम जैतपुर गाँव पर चढ़ाई की। इस युद्ध में उसके दो सौ सिपाही मारे गये। जैतपुर के लोगों ने जॉर्ज को रुपये देकर अपने जान व माल की रक्षा की। इसके बाद जॉर्ज गाँव दर गाँव जीतता हुआ बीकानेर की ओर बढ़ने लगा। बीकानेर के अधिकांश सामंत राजा सूरतसिंह से रुष्ट चल रहे थे क्योंकि सूरतसिंह ने बीकानेर के बालक महाराजा प्रतापसिंह की हत्या करके बीकानेर की गद्दी हथियाई थी। इसलिये वे जॉर्ज की सेना के साथ आ खड़े हुए।
सूरतसिंह ने अपने सरदारों को शत्रुपक्ष में गया देखकर हथियार डाल दिये। उसने जॉर्ज को दो लाख रुपये देने का वचन दिया। महाराजा ने एक लाख रुपये तो उसी समय चुका दिये तथा शेष एक लाख रुपये की हुण्डियां जयपुर के व्यापारियों के नाम लिख कर दे दी। व्यापारियों ने जॉर्ज को इन हुण्डियों के रुपये नहीं दिये जिससे जॉर्ज फिर से बीकानेर पर चढ़कर आया। इस बार बीकानेर की सहायता के लिये पटियाला की सेना आ पहुँची। इससे जॉर्ज की हालत पतली हो गयी किंतु ठीक उसी समय bhatiyon ने फतहगढ़ पर अधिकार करने के लिये बीकानेर राज्य के विरुद्ध जॉर्ज की सहायता मांगी तथा उसे 40 हजार रुपये प्रदान किये। जॉर्ज ने फतहगढ़ पहुँच कर उस पर bhatiyon का अधिकार करवा दिया।
इस क्षेत्र के विषम जलवायु की चपेट में आ जाने से जॉर्ज की दो तिहाई सेना नष्ट हो गयी जिसके कारण जॉर्ज इस क्षेत्र को छोड़कर फिर से अपने दुर्ग जॉर्जगढ़ में चला गया। जॉर्ज को दुर्बल हुआ जानकर उसके प्रतिस्पर्धी पैरन तथा कप्तान स्मिथ ने भी जॉर्जगढ़ पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में जॉर्ज की पराजय हो गयी और वह दुर्ग छोड़कर ब्रिटिश सीमा प्रांत की तरफ भागा ताकि वहाँ उसे शरण मिल सके। राजपूताने में कोई भी राजा जॉर्ज के लिये विश्वसनीय नहीं था जो संकट में उसकी सहायता कर सके। अगस्त 1802 में कलकत्ता जाते समय उसकी मृत्यु हो गयी तथा जाझ फिरंगी सदैव के लिये इतिहास के नेपथ्य में चला गया।